Thu 20th January 2022
सूरज कुछ नहीं बस एक बहुत बड़ा गड्ढा है अंधेरे का कुआं इसके चारों तरफ अनगिनत रश्मियों का नृत्य सतत चलता रहता है इनके प्रेम से अभिभूत घिरती हैं घटाएं बरसते हैं मेघ पृथ्वी करती है नर्तन तारागण झालर बन टिमटिमाते हैं धरती से दूब आसमान छूने को उद्यत यही प्रेम का बीज रूप है यही है साँसों का आवर्तन।